इंडिया में क्रिकेट जितना फैंमस गेम है, ठीक उतना ही हमारा क्रिकेट बोर्ड अपने हाल के बदनामी के चलते विश्व बाजार में चर्चा में है। इससे हमारे देश के नाम पर पता नही कितना असर पड़ रहा है, इस विषय पर डिबेट हो सकता है। लेकिन इंडिया ने क्रिकेट में अपने पैसे के रूतबे के कारण बाकी देशों के बोर्डे पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है, कि क्या वह भी पैसे कमाने के आड़ में खेल भावना का सम्मान करना भूल जाए ? हाल के परिस्थिति को देखकर यही लगता है कि विश्व के क्रिकेट बोर्डे में सिर्फ चार देश ही राज कर रहे है। जिसमें इंडिया प्रथम स्थान पर है, बाकी देश सिर्फ पिछलग्गू साबित होते दिख रहे है। सवाल इसी बात पर है कि अगर खेल का बाजारवाद से खिलाड़ियों का घर चलेगा तो इसमें इतना धूमा फेरा कर दिखाने की क्या जरूरत है। खिलाड़ी के साथ-साथ बोर्ड भी पैसा कमानी चाहती है। खिलाड़ी तभी नेशनल टीम में अच्छा प्रदर्शन देने के बजाय लीग मैच खेल कर घर चला रहे है। वही बोर्ड भी पैसा कमा रही है। इसलिए आज लगभग तमाम बोर्ड लीग मैचों का आयोजन करवा रही है। मौजूदा टीम वेस्ट इंडीज के चैपियनस ट्रॉफी से बाहार हो जाना इसी बात की ओर इशारा करती है। दुनिया जानती है कि वेस्ट इंडीज के खिलाड़ी हरफनमोला है लेकिन जब ऐसे टीम जिसने हांल में ही टी-20 विश्वकप जीती हो, चैपियनस ट्रॉफी में अपना स्थान नही बना पाए तो सारे खेल भावना खत्म हो जाती है। इस परिस्थिति के लिए अकेले वेस्ट इंडीज बोर्ड जिम्मेदार नही हो सकती है। विश्व क्रिकेट के जानकर कहते है कि खिलाड़ियों के अन्दर के पैसे का भूख ज्यादा है क्योकि इनको ये लगता है कि बोर्ड उनसे मैचे खिलवा कर अपना पैसा बना रही है, और उनको कम पे रोल अदा कर रही है। इसलिए बोर्ड के मैच से हटकर खिलाड़ी लीग मैच खेल रहे है। ये सीधा- सीधा हितो का टकराव है, नाकि खेल भावना ओर देश हित की।

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