Tuesday, 10 September 2013

मुजफ्फरनगर में तनाव जारी

मुजफ्फनगर में बीते कुछ दिनों से जिस तरह माहौल है उसे देखकर लगता है कि प्रदेश सरकार किसी भी आपदा, या हिंसा से निपटने में सक्षम नही है। चुनाव से पहले यही समाजवादी पार्टी प्रदेश में सभी को सुशासन देने की बात कह रही थी। लेकिन जब से समाजवादी पार्टी सत्ता में आई है कानून व्यवस्था बहुत ही नाजुक स्थिति में है। अब सवाल यह है कि जिस प्रदेश सरकार को केन्द्र की ओर से दंगा होने सुचना पहले से दी जाती है लेकिन वह उसे अपने संज्ञान में लेने में इतना समय क्यों लगाती है यह समझ से परे है। जब तक स्थिति किसी को समझ में आता हालात इतना खराब हो गया कि केन्द्र की सहायता लेना सरकार के लिए मजबुरी बन गयी। अब अखिलेश बाबू कह रहे कि किसी भी आफवाओं पर ध्यान न दें। जिस अखिलेश सरकार ने फेसबुक पर उनके सरकार के खिलाफ लिखने पर जेल भेजने में देरी नही करती उसी सरकार के नाक के नीचे कोई सोशल मीडिया पर वीडिया अपलोड कर देता है और सरकार को कुछ पता तक नही चलता। यह विश्वसनीय नही लगता। अब हम अखिलेश सरकार से यह उम्मीद करते है कि अब दंगा पूरे देश में न फैले। अखिलेश जी इतना हमारे ऊपर रहम कर दीजिए।

Tuesday, 20 August 2013

पत्रकारिता की वास्तविकता



हर साल जिस तरह देश में अलग-अलग कॉलेजों द्वारा इंजीनियरिंग डिग्री पाकर इंजीनियर नौकरी की तलाश में जुट जाते है लेकिन एक इंजीनियर को नौकरी चाहे कम सैलरी में ही सही मिल जाती है या कहे कि उन्हे भी नौकरी मिलने में कष्ट होती है लेकिन इनसे भी बुरा हाल पत्रकारों के साथ होता है देश के हजारों कॉलेजों से पत्रकार डिग्री हासिल कर हर साल निकल रहे है लेकिन उनके पास नौकरी नही है। देश में पत्रकारों की भरमार हो रही है। चाहे दिल्ली विश्वविद्यालय हो या कोई और संस्थान लेकिन पत्रकरों के जो जमीनी हकीकत है उससे सभी वाकिफ है। मीडिया हाउसों में पत्रकारों के लिए कोई सुविधा नही है। जो एक बार कैमरे के सामने प्रसिध्दी हासिल कर लेता है फिर उसकी चलती है। लेकिन वास्तविकता है कि जो नये पत्रकार है उनका क्या? जिस तरह कॉलेजों द्वारा पत्रकारों को डिग्री देकर मार्किट में छोड़ देती है वो निराशाजनक है। लाखों का फीस लेकर सिर्फ दो-चार वर्कशॉप कर देने से कॉलेज का कर्त्तव्य खत्म नही हो जाता है। उनका भविष्य कैसे बने इस बारे में कॉलज प्रशासन को सोचना चाहिए। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता का छात्र हूँ। मेरे कॉलेज का नाम राम लाल आनन्द है। हमसे हर साल 20 हजार से ज्यादा फीस बसूली जाती है लेकिन सुविधा के नाम पर जो लोग हमसे कम पीस देते है हमसे कई गुना ज्यादा सुविधा उनको मिलती है। उनके लिए प्लेसमेंट की व्यवस्था कॉलेज में की जाती है। लेकिन क्या हमारे कॉलेज के प्रधानाचार्य जी ने कभी मीडिया के छात्रों के लिए प्लेसमेंट की व्यवस्था कराई है। जबाब कोई भी राम लाल आनन्द के पत्रकारिता के छात्र दे सकता है। मीडिया हाउस की हकीकत तो यह है यदि आप किसी को जानते है तो आपकी नौकरी वहाँ है और यदि आपकी कोई जान- पहचान नही है तो आपके लिए नौकरी उपलब्ध नही है। क्या इस बात का पता हमारे प्रधानाचार्य को नही है जो हमारे किसी वर्कशॉप में आकर बड़े-बड़े बात करके चले जाते है। लेकिन जब बारी आती है छात्रों के लिए कुछ करना तो मुँह छुपाकर चले जाते है। यदि दिल्ली विश्वविद्यालय हिन्दी पत्रकारिता के लिए कुछ कर नही सकती तो उसे इस कोर्स को बन्द कर देना चाहिए। आप हर साल मोटी फीस भी लें और बदले में बच्चों को कुछ नसीब भी न हो यह बरदाश के बाहर है। पत्रकारों को इन बड़े विश्वविद्यालयों ने मजदूर खाना बनाकर रखा है। फीस लेते समय बड़ी-बड़ी बात करते है लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ नही इसलिए दिल्ली विश्वविद्यालय को सोचने की आवश्यकता है।

Sunday, 28 July 2013

दिग्विजय सिंह का टंच माल



कांग्रेस के दिग्गि राजा ने इस बार राहुल गांधी के करीबी मीनाक्षी नटराजन को टंच माल की संज्ञा से सम्मानित किया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में सुमार दिग्विजय सिंह अक्सर अपने वयानबाजी के चलते सुर्खियों में रहते है। लेकिन इस बार उन्होने अपने ही पार्टी के सदस्य के बारे में ऐसा वक्तत्व दे दिया है जिससे पार्टी के अन्दर और मीडिया में उनका काफी बदनामी हुआ है। लेकिन मौके का सही उपयोग तो मीनाक्षी नटराजन ने किया उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्हे दिग्विजय सिंह द्वारा दिए गए बयान से कोई ऐतराज नही हैं। मीनाक्षी ने बताया कि दिग्विजय सिंह उनके काम से काफी खुश है जिससे उन्होने उनकी काम के तारीफ करने के इरादे से ऐसा बयान दिया है। अब सवाल यह उठता है कि यह सारे नेता किस तथ्य पर बयानबाजी करते है और जब देखते कि स्थति खराब हो रही है तो अपने बयान को निजी बताकर पार्टी के विचारधारा से अलग करने की कोशिश करते है। ताकि पार्टी के अलाकमान के नजरों से बचा जा सके। साथ ही साथ सुर्खियों में होने से मीडिया से अच्छा खासा लोकप्रियता मिल जाती है।


Thursday, 25 July 2013

गरीबी

यूं ना मजाक बनाओं गरीबी का,
खाने पीने का पता नही।
कहां सोये उसका पता नही।
क्या पहने उसका पता नही।
नौकरी देने की व्यवस्था नही।
खाने का थाली कहां,
उसका भी पता नही।
सरकार का कोई व्यवस्था नही।
भ्रष्टाचार है जहां चरम परज
जहां सरकार गिराये महंगाई का पहाड़
गरीबों के कंधों पर
गरीबों की थाली का हिसाब लगाये 5 रूपये से अधिक पर
कमाल करती है भारत की सरकार
जनता पर करती नये प्रयोग
कैसे उनको चूसा चाहे जीवन के पकडंडी पर।
कौन जीये और कौन मरे
कोई हिसाब नही
थाली के आंकड़े लगाते
बेशर्म सरकार समझ नही आता


राजनीति के जंग



भाजपा कोशिश कर रही कि रह हालत में 2014 में वह सत्ता में आए। इससे पहले भाजपा 2009 में जिस तरह कांग्रेस के खराब काम होने के बावजूद चुनावी लड्डू बांटने पर वोटर पिघल गये थे। भाजपा कार्यरकर्ताओं द्वारा ढिलमूल रवैये के चलते उनकों चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। यह उसी का नतीजा है कि अब इस बार भाजपा काफी सक्रिय दिख रही हैं। बेसक अभी चुनाव काफी दूर है लेकिन भाजपा कार्यकर्ता कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ये काफी  आगे है। लेकिन अभी तक भाजपा में सबसे ज्यादा समस्या इस बात की रही ह कि भाजपा फिजूल खर्जा में सबसे आगे है। चाहे रथ यात्रा हो या इंडिया साइनिंग सभी भाजपा के लिए उजूल खर्जी है। इसी गलत प्रदर्शन का फायदा कांग्रेस लेता है। लोगों तक भाजपा के खिलाफ बोलता है लोगों को लगता है कि यह तो सही भाजपा काफी गलत नीति लेकर चलता है सरकार बनते फिजूल खर्जी करने में पार्टी अपना समय बर्वाद करेगी । जिससे पार्टी का नाम खराब होता है। जहां कांग्रेस इतने घोटाला करने के बाद भी लोगों के नयन तारा बनकर रहता हैं। लेकिन भारत के जनता को सोचना होगा कि पार्टी चाहे कांगेस हो या भाजपा सभी के ऊपर आरोप लगते रहे है। लेकिन बेहतर सरकार की तुलना अगर करें तो पायेंगे कि भाजपा की सरकार कांग्रेस की मौजूदा सरकार से कई गुना स्पष्ट ,था सही था इस बपात पर कोई दोराह नही होना चाहिए। मैं किसी पार्टी को सपोट नही कर रहा लेकिन वास्तविकता तो यही है। इस लिए कम से कम इस बार हमें भाजपा को वोट देना चाहिए जिससे कांग्रेस ओर भाजपा के विकास नीति का पता तो चले कि कौन किससे बेहतर सरकार चला सकता हैं।
जरा सोचिएगा।

Saturday, 15 June 2013

राजनीति के पत्ते
कौन जाने क्या हैं राजनीति..
लेकिन मजेदार हैं राजनीति..
गलियों में भाषण दिए,
बन गये पार्षद,,
फिर मौका मिला तो बन गये सांसद
पहुंचे दिल्ली उड़ाते जनता के खिल्ली
तोड़े जनता के सारे वादे
अब तो नेता कहे चलों दिल्ली
राजनीति की हैं यही पहचान।
उड़ान खटोला पर बैठकर करे राजनीतिक मुलाकात
कैसे बनाए पार्टी में अपनी धाक
कैसे मिले पार्टी अध्यक्ष पद...
करते जुगाड़ सब अब।
छेड़ो साम्प्रदायिक आग,
समाज में फैलाओं कलह का आग।
क्या यही हैं लोकतन्त्र की आइना।
देश के नाम से नेता करे अपना बचत योजना।
यह वों कहे जिसके मन में अभी भी हैं
पीएम बनने की सपना।
कौन जाने कैसे चल रहा लोकतन्त्र।
 जो पीएम पद पर हैं विराजमान
वो तो हैं बस एक धूत।
फैसला कोई ओर करे
इनकी तो बस हैं रिमोट कंट्रोल।
यह तो हैं लोकतन्त्र की पहचान,
अब देश को चाहिए एक कठोर पीएम
जो अपना फैसला खुद करे
ताकि हो देश का विकास
जिससे देश के लोग कहे
अब राजनीति नही हैं बेकार






Tuesday, 11 June 2013

जिन्दगी
लोगों ने कभी दिया नही,
मैनें कभी उनसे मांगा नही।
क्योकि बिना मांगगें यहां कुछ मिलता नही।
यह रीत चल पड़ा हैं अब।
समझे एक फ़कीर अब भी अब।
इसलिए दरवाजे पर आते करता बौछार आर्शीवाद।
लोग दुआओं से भी अब नही पिघलते,
जबसे अमीरी गरीबी की पड़ी हैं नींव।
फिर भी चला तू मांगने उन लोगों के पास।
सुनने भी करते अनसुना तुझे।
समझे हैं एक फ़कीर तूझे।
तू रूक मत अब मांगने उनसे।
ये मुक्द्दर ये जिन्दगी ले अब।
धन्यवाद



Sunday, 14 April 2013

बेतहाशा कटौती से लोग बेहाल


गाजियाबाद. बिजली कटौती ने शहरवासियों को बेहाल कर दिया हैं। प्रदेश स्तर पर बिजली संकट ने गाजियाबाद में अघोषित कटौती का दायरा बढ़ा दिया हैं। दिन में तीन बार इमरजेंसी कटौती की जा रही हैं। इसके अलावा ट्रांसमिशन से दो से चार बार बिजली कटौती की जा रही हैं। जिससे शहर में कुल मिलाकर आठ से दस घंटे की बिजली कटौती की जा रही हैं। जिससे शहर के लोगों को पानी की किल्लत भी झेलने पड़ रहे हैं। पावर कॉपोरेशन अधिकारियों का कहना हैं कि बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच अंतर गहराने के कारण समस्या बढ़ी हैं।
नरौरा में बिजली उत्पादन में कमी और हरदुआगंज में आए संकट के कारण प्रदेश स्तर पर बिजली की समस्या दिखाई दे रही हैं। गर्मी आने से बिजली की मांग मांग में बढ़ोतरी हुई हैं। पावर कॉपोरेशन की माने तो गाजियाबाद में 1000 मेगावाट की बिजली की मांग हो गई हैं। आपूर्ति घटकर 750 से 800 मेगावाट के बीच गई हैं। मांग व आपूर्ति में इतना अंतर होने के कारण लोगों को बिजली किल्लत का समाना करना पड़ रहा हैं। कॉरपोरेशन को 24 घंटे में 10 घंटे की कटौती करना पड़ रही हैं। पिछले 3 दिनों में सुबह 9 से 11 दोपहर एक से तीन और रात में 10 से 12 बीच के बीच इमरजेंसी बिजली कटौती की जा रही हैं। मुरादनगर में 220 केवी सब-स्टेशन की पावर लोडिंग के कारण भी कटौती की समस्या आ रही हैं। पावर कृपोरेशन के अधीक्षण अभियंता ट्रांसमिशन एसपी राम का कहना है कि बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतरप कम होने पर ही बिजली कटौती में कमी आएगी।
 विपुल समाजदारॉ
ट्रेन की चपेट में आने से दो लोगों की मौत
 शनिवार को लिंक रोड थाना क्षेत्र के महाराजपुर ट्रैक व कड़कड़ मॉडल गांव के निकट एक व्यकित और एक युवक ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई हैं। दोनों की शिलाख्त नही हो सकी हैं। पुलिस का कहना हैं कि सफऱ के दौरान गिरने से दोनों की मौत हुई हैं। पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। दोनो की पहचान अभी नही हो पाई हैं। युवक की उम्र 22 वर्ष बताया जा रहा हैं। जबकि व्यकित की उम्र 4द से ऊपर हैं।
विपुल समाजदार
अंबेडकर जयंती
देश के संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर की 14 अप्रैल को पूरे देश में उनका जयंती मनाया जा रहा हैं। लेकिन शुरूआती जीवन में अंबेडकर, उनके बिचारों को मानने वाले बहुत कम व्यक्ति थे। उनके मृत्यु के पश्चात उनके विचारों को मानने वाले लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ी हैं। अंबेडकर के विचारों को विशेषता दलित तथा आदिवासी समाज ने सबसे ज्यादा माना हैं। आज जो दलित तथा आदिवासी समाज के कुछ लोग समाज के ऊँचे पदों पर कार्यरत हैं वह अंबेडकर के वदौलत ही सम्भव हो पाया हैं। लेकिन अंबेडकर ने सिर्फ सरकारी क्षेत्र में ही इन लोगों के लिए काम कर पाए हैं। इसलिए आज भी प्राइवेट सेक्टर में दलित तथा आदिवासी समाज के लोगों की संख्या निन्म मात्र हैं। शायद इसकी वजह अब अंबेडकर को नही दे सकते क्योकि अंबेडकर के नाम से जो लोग अब राजनीति करते हैं वो इसकी वजह सबसे ज्यादा हैं। अबेडकर ने दलितों और आदिवासी समाज के लोगों की उत्थान ने जो आरक्षण नीति को अपनाया था उसको आज तमाम राजनीतिक पार्टी चुनावी दंगल में तुर्क का पत्ता मानते हैं। इसमें सबसे ज्यादा जिस पार्टी ने फायदा उठाया वो हैं बहुजन समाज पार्टी शुरूआत में यह पार्टी पंजाब, हरियाणा में अपने को स्थापित कर पाया क्योकि अंहेडकर की जन्म पंजाब में हुआ था इसलिए उनके अनुयायी की संख्या यहां सबसे ज्यादा थी। इन लोगों ने अंबेडकर विचारों को आगे बढ़ाया जिससे लोगों को इस पार्टी की ओर समर्थन भी सबसे मिलने लगी थी। लेकिन जब कांशीराम के मार्गदरर्शन में मायावती ने इसका बागडोर सम्हाला तो यह पार्टी सिर्फ उत्तरप्रदेश के राजनीति में अहम पार्टी बनकर रह गयी। शायद यही पर लोगों का विश्वास इस पार्टी के साथ खत्म हो गया। आज अंबेडकर हमारे बीच नही हैं लेकिन उनके नाम से राजनीति करने वाले तमाम पार्टी मौजूद हैं। वह सिर्फ अबेडकर जयंती के दिन उनको याद करते है। लेकिन हमें एक ऐसे समाज के निर्माण में अग्रसर होना चाहिए जो उनके विचारों पर चलने वाले इन राजनातिज्ञ पार्टी जो स्वार्थ के अधीन में आकर नही कर सकी।
विपुल समाजदार